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महिलाओं के लिए बकरियां एटीएम से कम नहीं

charchaउत्तर प्रदेश : जिला बदायूं के गांव नैथू में दस महिलाओं के एक स्वयं सहायता समूह ने बकरी पालन का व्यापार शुरू किया है। ये महिलाएं अपनी बकरियों को एटीएम कार्ड कहकर पुकारती हैं। 120 महिलाओं के इस स्वयं सहायता समूह के पास ऋण सुविधा उपलब्ध होने के बावजूद इतनी क्षमता नहीं थी कि बड़े दुधारू जानवर जैसे गाय, भैंस आदि खरीद सकें। इसलिए उक्त समूह ने यह फैसला किया कि बकरी-पालन ही किया जाए और इस तरह इस समूह ने एक बकरी चार से पांच हजार रुपये में और बकरी का बच्चा हजार रुपये में खरीदा ।
स्वंय सहायता समूह की सदस्य रुखसाना अपने अतीत को याद करते हुए कहती हैं कि “बिस्मिल्लाह समूह” की दस महिला सदस्य वर्ष 2014 में राजीव गांधी महिला विकास परियोजना के अंर्तगत बकरी पालन का प्रशिक्षण लेने गई, वहां उन लोगों ने हमें ऋण के रूप में 15000 रुपये व्यापार शुरू करने के लिए दिए जिसमे से मैनें 5000 हजार रुपये के हिसाब से तीन बकरियां ख़रीदी। एक साल में हर बकरी ने दो दो बच्चे दिए, इस तरह दो वर्षों में मैनें बकरी के चार बच्चे 22,000 हजार रुपये में बेच दिए और फिर उन पैसों का एक बड़ा हिस्सा दुबारा अपने व्यापार में लगाते हुए छह बच्चे और खरीद लिए और बकरीद के अवसर पर जब बकरों की मांग बढ़ी तो 50 साल पुराने और प्रसिद्ध उल्का पूर बाजार मे जहां मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों से व्यापारी आते हैं उनके हाथों बकरियों को अच्छी कीमत पर बेचा और उचित मूल्य पर दूसरे स्वस्थ बछड़े खरीद लिए”।

मालुम हो कि बदायूं में बकरी चराने की कोई परेशानी नहीं है, क्योंकि ज्यादातर परिवारों के पास अपनी कृषि भूमि हैं, वह अपनी बकरियों को गेहूं, मक्का और अन्य फसलों के अपशिष्ट खिलाकर उनका पालन पोषण करते हैं। बिस्मिल्लाह समूह की सभी दस महिला सदस्य इस समय बकरियां-पालन कर रही हैं, पुरुष भी महिलाओं के साथ इस काम को बढ़ावा देकर अच्छा मूल्य प्राप्त कर रहे हैं। चूंकि बकरियों के पालन पोषण और अगर वह बीमार हो जाएं तो डॉक्टरी इलाज की सारी जिम्मेदारी महिलाओं और बच्चों पर होती है। इसलिए रुखसाना अब इरादा कर रही है कि रायबरेली जाकर पशु उपचार का प्रशिक्षण ले और अपने गांव के पशुओं का इलाज कर गांव वालों की परेशानी कम करते हुए अपनी आय में भी वृद्धि करे। क्योंकि बकरियों की बीमारी में पैसा पानी की तरह बहाना पड़ता है ।

रुखसाना के “बिस्मिल्लाह समूह” ही की तरह थालया नगला गांव में महिलाओं का एक दूसरा समूह “सरस्वती समूह” के नाम से स्थापित है । इस समूह की महिलाओं ने 15000 रुपये में छह बकरी के बच्चे 5000 रुपये में दो बकरे खरीदे, और 10000 रुपये अन्य कार्यों में लगाकर कुल 30,000 रुपये से अपना व्यापार शुरू किया। उम्मीद है कि 2017 में आने वाली बकरीद के अवसर पर कम से कम 80,000 हजार रुपये की आय बकरियों से होगी। क्योंकि ये महिलाएं जानती हैं कि बकरों का वजन कैसे किया जाता है और कितने वजन बकरी को कितनी कीमत में बेचा जा सकता है।
बकरी पालन के इस व्यवसाय में ज्यादातर महिलाएं एक विशेष प्रकार की बकरी पालती हैं जिसे “बारबरा पीढ़ी” कहा जाता है, उसके कान छोटे और रंग चितकबरा होता है। इस पीढ़ी की बकरी साल में दो बच्चे और दूसरी पीढ़ी के झुंड से अधिक दूध देती हीं। उक्त गांव में भी बकरी का दुछ 100 रुपये लीटर मिलता है जबकी बरसात के मौसम में जब डेंगू बुखार का प्रकोप बढ़ जाता है तो दूध की कीमत 600 लीटर तक पहुंच जाती है। क्योंकि बकरी का दूध डेंगू बुखार में रोगियों के लिए बहुत लाभदायक होता है। महिलाएं बकरियों को “कच्ची चांदी” के नाम से भी बुलाती हैं, क्योंकि इससे आय अच्छी खासी हो जाती है।

बकरियों की दूसरी पीढ़ी “तोतापरी” के नाम से प्रसिद्ध है। यह बकरियों की नस्ल में शाही नस्ल मानी जाती है। इन्हे बड़े लाड-प्यार से पाला जाता है। इनके लिए ईरकंडिशन कमरों में पलंग का प्रबंध किया जाता है जिस पर यह बैठती हैं और खाने के लिए दूध-जलेबी दी जाती है।

आपको बताते चलें की बदायूं जिले के ब्लॉक के नजदीक एक गांव में इस बकरीद के अवसर पर अवसर पर तोतापरी बकरों की एक जोड़ी 7 लाख रुपये में बिकी है। इसलिए कहा जा सकता है कि बकरियों ने अपने मालिक को अच्छी ईदी दी। इस खास नस्ल की बकरी की ख़ूबसूरती को देखने के लिए आसपास के गांव से लोग बड़ी संख्या मे आ रहे थें।

उषा राय
(चरखा फीचर्स)

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