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सोशल मीडिया : कितना सकारात्मक – कितना नकारात्मक ? पढें , वरिष्ठ पत्रकार सगीर ए खाकसार का विश्लेषण

 

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सोशल मीडिया हम सबकी ज़िन्दगी का एक अहम हिस्सा बन गया है।जिसके जरिये हम सूचनाओं का आदान प्रदान और मनोरंजन करते हैं।एक दूसरे से जुड़े रहते हैं।यह एक वर्चुअल वर्ल्ड का निर्माण भी करता है।यह एक विशाल नेटवर्क है।
सोशल मीडिया हमारे जीवन में कितनी गहरी पैठ बना चुका है इसका अंदाज़ा आप इन आंकड़ों से लगा सकते हैं।वीआर सोशल हूटसयूट ने जो आंकड़े डिजिटल 2017 ग्लोबल ओवरव्यू के नाम से प्रकाशित किये हैं,उसके अनुसार भारत की कुल जनसंख्या करीब 1.31अरब है।जिसमें 46.2करोड़ इंटरनेट यूजर्स हैं।यही नहीं सोशल मीडिया पर एक्टिव यूज़र्स की तादाद 19.1करोड़ है।मोबाइल से सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वालों की तादाद करीब 16.9करोड़ है।सोशल मीडिया की दुनिया मे ग्रोथ रेट 30 फीसदी है तो भारत की ग्रोथ रेट करीब 44 फीसदी है।फेसबुक,इंस्टाग्राम,ट्विटर , व्हाट्सएप्प,हाइक, इमो,स्नैपचैट,वाइबर आदि सोशल मीडिया के प्लेटफार्म हैं।जहां लोग असानी से अपना अकॉउंट खोल कर इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।तकनीक के ढेर सारे फायदे होते हैं और नुकसान भी।यही बात सोशल मीडिया पर भी लागू होती है।सोशल मीडिया के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू हैं।सोशल मीडिया के तमाम फायदे के बावजूद नकरात्मक पक्ष यह है कि इसका बच्चों पर ज़्यादा दुष्प्रभाव पड़ रहा है।जिसको लेकर चिंताएं बढ़ गयी हैं।अलग अलग देशों में सोशल मीडिया के इस्तेमाल का बच्चों पर पड़ रहे दुष्प्रभाव को लेकर अध्ययन हो रहे हैं।प्रबुद्ध वर्ग अपनी अपनी राय भी दे रहे हैं।भारत मे हालांकि इस तरह के सर्वे अभी कम हुए हैं लेकिन चिंताएं सबकी एक समान ही हैं।
सोशल मीडिया पर बच्चों की ज़्यादा निर्भरता से उनमें चिड़चिड़ापन और असंतुष्टि का भाव ज़्यादा पैदा होता है।पहले बच्चों का दायरा सीमित था ।वो चुनिंदा दोस्तों और और अपने माँ बाप के ही प्रभाव में रहते थे।अब उनका दायर बढ़ गया है।वो अनजाने दोस्तों के भी प्रभाव में है जिनको वो जानते तक नहीं लेकिन उनके सुझावों पर आसानी से भरोसा करलेते हैं।चार पांच साल तक बच्चा सिर्फ अपनी मां के प्रभाव में रहता है उसके बाद पिता ,स्कूल व अन्य लोगों के संपर्क में आना शुरू करदेता है।सोशल मीडिया पर बच्चों की ज़्यादा निर्भरता उन्हें घर,परिवार,और दोस्तों से दूर कर देती हैं।यहीं नहीं सोशल मीडिया पर ज़्यादा निर्भरता से उनमें पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी में कमी तो आती ही है ,इसके अलावा सीखने की क्षमता में कमी और याद रखने की क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।स्कूल जाने वाले बच्चों का मन मनोरंजन में ज़्यादा और अध्ययन में कम लगता है।अश्लील और निरर्थक सामग्री आसानी से उपलब्ध होने से उनमें बुरी लत पड़ने का भी खतरा उत्पन्न हो जाता है।अपने माता पिता से मदद मांगने के बजाए सोशल मीडिया का ज़्यादा इस्तेमाल करने वाले बच्चे अनजने लोगों से मुश्किल वक़्त में मदद मांगने लगते हैं।जहां उन्हें उचित सलाह नहीं मिलती।दोस्तों से चैट और निरर्थक विषयों पर लंबी लंबी बहसों से समय की बर्बादी होती है और निष्कर्ष कुछ नहीं निकलता है।चूंकि बच्चे उतने परिपक्व नहीं होते है कि स्वस्थ विमर्श कर सकें।सीखने और पढ़ने की उम्र में समय का सदुपयोग बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।खास तौर पर जब आप अपने करियर को लेकर संघर्ष कर रहे हों।

आई टी आई ,जे ई ई के टॉपर रहे सर्वेश मेहतानी कहते हैं कि परीक्षा की तैयारी करने के लिए उन्होंने दो साल तक स्मार्ट फ़ोन का परित्याग कर दिया था।यही नहीं आप को शायद यह जानकर आश्चर्य हो कि बिल गेट्स और स्टीव जॉब जैसे टेक्नोजायंट्स भी कहते रहे हैं कि अपनी ही बनाई टेक्नोलोजी अपने बच्चों को इस्तेमाल करने नहीं देते थे क्योंकि इससे उनके पठन पाठन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
फ़ेसबुक,इन्स्टाग्राम और व्हाट्सएप्प आदि कम उम्र के बच्चों को इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देते हैं ।हालांकि इसके इस्तेमाल की आयु सीमा भी तय की गयी है।लेकिन इसे लागू कैसे किया जाए यह बड़ा सवाल है।फेसबुक और इंस्टाग्राम के निर्देशों को अगर मानें तो 13 वर्ष के कम उम्र के बच्चों को इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।व्हाट्सएप्प के दिशा निर्देश कहते हैं कि 16 साल के कम उम्र के बच्चों को इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।एक अन्य सर्वे के मुताबिक करीब 15.5करोड़ लोग हर महीने फ़ेसबुक पर आते हैं।एक शोध के अनुसार करीब 92 फीसदी गरीब किशोर इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं जिनमे 65 फीसदी के पास स्मार्ट फ़ोन है ।वहीं सम्पन्न परिवारों के 97 फीसदी किशोर नेट का इस्तेमाल कर रहे हैं जिनमे 69 फीसदी किशोरों के पास स्मार्ट फ़ोन है।
सोशल मीडिया से जुड़े लोग भी बच्चों पर पड़ रहे नकारात्मक प्रभाव से खासा चिंतित दिखाई पड़ते हैं।फेसबुक के पहले प्रेसिडेंट शान वर्कर ने बच्चों पर अपनी राय जाहिर करते हुए कहा था कि हमारे बच्चों के साथ सोशल मीडिया क्या कर रहा है”?यह तो भगवान ही जानता है।उनके इस बयान ने सबको चौंका दिया।और एक बड़ी बहस शुरू हो गयी।
अपने देश में बाल मन पर सोशल मीडिया के प्रभाव का विश्लेषण करने के लिए आम तौर पर कम ही अनुसंधान हुए हैं।जो हुए भी हैं वो नाकाफी हैं।विदेशों में किशोरों पर सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव पर प्रायः सर्वे होते रहते हैं।ब्रिटेन में सोशल मीडिया का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है इस पर विस्तृत शोध हुए हैं।जो तथ्य सामने आए वो बहुत ही चौकाने वाले हैं।ब्रिटेन में हुए एक सर्वे के मुताबिक सोशल मीडिया का ज़्यादा इस्तेमाल करने वाले बच्चों की मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।नेट का ज़्यादा इस्तेमाल करने वाले बच्चो में असंतुष्टि का भाव ज़्यादा रहता है।ब्रिटेन के इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स दुआरा सोशल मीडिया यूज़ एंड चिल्ड्रेन्स वेलीबीइंग अध्यन के दौरान 10 से 15 साल के करीब 4000 बच्चों से बात चीत की गई।इस अध्ययन में बच्चों के तमाम पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की गई।घर ,परिवार,दोस्त स्कूल और जीवन से कितने बच्चे संतुष्ट होते हैं।बच्चे सोशल मीडिया का कितना इस्तेमाल करते हैं आदि विषयों पर अध्ययन हुआ।अध्ययन में पाया गया कि जो बच्चे सोशल मीडिया का ज़्यादा इस्तेमाल करते थे वो अपने जीवन से कम संतुष्ट दिखे और जो बच्चे कम इस्तेमाल करते थे वो ज़्यादा सन्तुष्ट थे।एक तथ्य और जो सामने आया वो यह कि लड़कियों पर इसका असर और भी ज़्यादा पड़ता है ।वो शायद इस लिए कि लड़कियां लड़कों की तुलना में ज़्यादा भावुक और संवेदनशील होती हैं।
कई देशों ने सोशल मीडिया का बच्चों पर पड़ रहे दुष्प्रभाव को देखते हुए इसके नियमन के लिए कदम उठाए हैं।ब्रिटेन ने तो बाकायदा साइटों और एप्प के घंटे निश्चित पर विचार कर रही है।दिशा निर्देश बनाने पर काम कर रही है।सोशल मीडिया का उचित उपयोग जहां एक तरफ ज्ञान का खजाना है तो वहीं दूसरी तरफ बच्चों के मानसिक स्वाथ्य पर बुरा प्रभाव डालने वाला साबित हो रहा है।समय रहते हम सबको सचेत रहने की ज़रूरत है।अपने देश मे नौनिहालों को सोशल मीडिया के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए नए शोध और अध्ययनों की आवश्यकता है जिससे बच्चों को सोशल मीडिया के दुष्प्रभावों से बचाकर उनके बचपन को सुखमय और भविष्य को उज्ज्वल बनाया जासके।उन्हें आवश्यक तनावों से बचाया भी जासके।सद्गुरु जग्गी बासुदेव ने तो इसकी पहल अपने आश्रम में चलने वाले ईशा होम स्कूल से बाकायदा कर दी है।उनके स्कूल में 14 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया से पूरी तरह दूर रखा जारहा है।यही नहीं उन्हें कम्प्यूटर तक छूने की इजाज़त नहीं होती है।उन्हें अपने माँ बाप को ईमेल करने की भी अनुमति नहीं है।सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव से नौनिहालों को बचाने के लिए बृहद स्तर पर व्यापक दृष्टिकोण की ज़रूरत है।प्रबुद्धजन,स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ सम्बंधित विभागों को भी उचित पहल करनी चाहिए।

 

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार और टिप्पणी कार हैं )

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