ताज़ा खबर

IMG_2018-05-22_19-48-23-600x450

डुमरियागंज संसदीय सीट : 1999 से 2014 तक मोक़ीम लड़े तो जीते या दूसरे नम्बर पर रहे, नज़रअंदाज़ करना गठबंधन के लिए आसान नहीं , पढें -पूरी खबर

 

IMG_2018-05-22_19-48-23-600x450

जीएच कादिर प्रभाव इंडिया के लिए

डुमरियागंज । आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर यूपी में सपा-बसपा का गठबंधन तो तय माना जा रहा है जबकि कांग्रेस पार्टी का इस गठबंधन में कुछ संशय बरकरार है, वजह बताई जा रही है सीट बंटवारे का कुछ पेंच फसा है ।
वैसे अगर डुमरियागंज के परिपेक्ष्य में गठबंधन उम्मीदवार को लेकर देखा जाए तो पार्टी हाई कमान जो भी फैसला लेती है , उसे पार्टी के लोग मानने को मजबूर होंगे ।
लेकिन पूर्व सांसद मोहम्मद मोक़ीम को नज़रअंदाज़ करके टिकट बंटवारा करना डुमरियागंज लोकसभा सीट जीतना आसान नहीं प्रतीत हो रहा है ।
1999 से लेकर 2014 तक डुमरियागंज लोकसभा सीट के लिये हुए चुनाव में किसी भी पार्टी का कंडीडेट मोहम्मद मोक़ीम से ही लड़ा है । पूर्व सांसद एवं कांग्रेसी नेता मोहम्मद मोक़ीम का संसदीय राजनीति में कई रेकॉर्ड भी है । वह जब बसपा से लड़े या तो जीते अथवा दूसरे नंबर पर रहे । वहीं जब वह बसपा से नहीं लड़े तो इस पार्टी से लड़ने वाला उम्मीदवार तीसरे नम्बर पर रहा है । बात 1999 की करें तो भाजपा के रामपाल सिंह ने एक लाख 98 हज़ार वोट पाकर जीते तो काँग्रेस से लड़ने वाले मोहम्मद मोक़ीम एक लाख 63 हज़ार वोट पाकर दूसरे नम्बर पर रहे , वहीँ सपा से लड़ने वाले कमाल यूसुफ मलिक तीसरे और बसपा उम्मीदवार सुरेन्द्र यादव को मात्र 96 हज़ार वोट मिले और वह चौथे स्थान पर रहे । 2004 में मोहम्मद मोक़ीम को कांग्रेस से टिकट नही मिला तो वह बसपा का दामन थाम लिया । इस चुनाव में मोहम्मद मोक़ीम ने कांग्रेस उम्मीदवार जगदम्बिका पाल को 53000 वोटों से हराकर विजयी हुए । वहीं 2009 में कांग्रेस के जगदम्बिका पाल ने बसपा के मोक़ीम को हराया और मोक़ीम दूसरे नम्बर पर पहुँच गए भजपा तीसरे और सपा चौथे पर । जबकि 2014 में कांग्रेस से पाला बदल कर भाजपा में आये जगदम्बिका पाल फिर विजयी हुए , उन्होंने अपने निकटतम मोहम्मद मोक़ीम को हरा दिया । मोक़ीम बसपा के टिकट पर हारे ज़रूर, लेकिन उन्हें 2 लाख 10 हज़ार वोट मिला और दूसरे स्थान पर रहे । इस चुनाव में सपा तीसरे, पीस पार्टी चौथे और भाजपा नेता जयप्रताप सिंह की काँग्रेस से लड़ने वाली पत्नी पांचवें स्थान पर खिसक गईं ।
इसी को आधार मानकर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि काँग्रेस गठबंधन से बाहर रहती है तो उस पार्टी से मुकीम का लड़ना निश्चित है , यद्दपि गठबंधन में काँग्रेस शामिल हो जाती है तो पूर्व सांसद मोहम्मद मोक़ीम को टिकट की दावेदारी से नज़र अन्दाज़ करना गठबंधन के लिए बेहतर नही होगा । राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मोक़ीम जनता से जुड़े नेता हैं, वह एक शांत स्वभाव के नेता हैं और अल्पसंख्यक समुदाय में उनकी अच्छी खासी पकड़ भी रही है और यह संसदीय क्षेत्र मुस्लिम बाहुल्यता का आधार पर देश में 22वाँ स्थान रखता है । जानकारों का यह भी कहना है कि मोक़ीम की लोकप्रियता का सबूत यही है कि 1999 से लड़े संसदीय चुनाव में अबतक वह या तो जीते हैं अथवा दूसरे नम्बर पर ही रहे हैं , और जब वह बसपा से नही लड़े तो पार्टी चौथे अथवा तीसरे स्थान पर रही ।
अब सवाल यह उठता है कि शीर्ष नेतृत्व गठबंधन को लेकर टिकट बंटवारे में क्या रुख अख्तियार करता है यह तो वक़्त बतायेगा, लेकिन इस चुनाव में पूर्व सांसद मोहम्मद मोक़ीम को नज़रअंदाज़ करना आसान नही है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Prabhav India

prabhavindia

prabhav india Prabhav india