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भगवा कुर्ता, काली सदरी, माथे पर तिलक और होंठो पर या हुसैन, गंगा जमुनी तहज़ीब के पैरोकार हैं स्वामी सारंग

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अहमद सुहेल

स्वामी सारंग संगम इलाहाबाद नगरी के एक ब्राह्मण परिवार में 7 जुलाई 1973 को जन्मे, प्रारम्भिक शिक्षा व लालन पालन इलाहाबाद में ही हुआ। पढ़ाई को आगे बढ़ाते हुए राजस्थान पहुँचते हैं और यहीँ पर स्नातक तक का सफर मुक़म्मल होता है और फिर रुख किया नवाबों के शहर की ओर। एक खास मक़सद के तहत लखनऊ आते हैं, मानवता के देवता इमाम हुसैन पर अपना शोध करने के लिए शायद इससे अनुकूल और उपयोगी शहर हो ही नही सकता था। क्योंकि इसे शहर-ए-अज़ा (मुहर्रम मनाने वाला शहर) भी कहा जाता है।

 

छोटी उम्र से ही धार्मिक किताबों और भिन्न-भिन्न धर्मों को पढ़ना शुरू कर देते हैं और बीसवें बरस में पहली बार कर्बला के नायक इमाम हुसैन को पढतें हैं। मानवता के इस सुल्तान की जीवनशैली, वसूलों और सत्यता के लिए इतनी महान बलिदान से काफ़ी प्रभावित होते हैं और यहीं से इमाम हुसैन के पथ पर चलने का निर्णय लेते हैं। आम छात्रों की विचारधारा से हट कर एक अलग राह चुनते हैं, वो राह जिन पर प्रश्नों और आलोचनाओं का मिलना अवश्यम्भावी है। लेकिन अब सारंग जी को किसी बात की परवाह नही थी वो तो जन्नत के सरदार, मुहम्मद की आंखों के तारे, अली के दुलारे इमाम हुसैन से दिल का सौदा कर चुके थे। सारंग अब सिर्फ सारंग नही रहे बल्कि अब उनके नाम के आगे स्वामी लग चुका था।

 

“बग़ैर नामे मोहम्मद अजां नहीँ होती

जहाँ-जहाँ है अज़ाने वहाँ-वहाँ हैं हुसैन”

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स्वामी कहते हैं कि जिस तरह लखनऊ शहर इमाम हुसैन(अ.स.) के शोक में डूब जाता है और ये सिलसिला अनवरत चलता रहता है वह इस बात की पुष्टि करता है कि हक़ व सदाक़त का शर के साथ मुक़ाबला आज सिर्फ शियों तक महदूद नहीं रहा बल्कि बिला तफ़रीक मज़हब व क़ौम आम लोग इमाम हुसैन की शाहदत को याद करके पूरे देश मे ये संदेश देते हैं, कि हिंदुस्तान किसी भी क़ौम का नहीं बल्कि हम सब का है और हम हर उस बुराई का विरोध करते हैं जो की हुसैनियत के पथ पर आती है।

 

“हमने देखा है कि हर साल खिलाफे मातम

जो भी तूफ़ान ज़माने में उठा बैठ गया”

 

स्वामी मोहर्रम में दो महीने आठ दिन तक अधिकतर काले सफ़ेद कपड़े ही पहनते हैं और बताते हैं कि मोहर्रम में कोई भी ख़ुश रंग (लाल, पीला, नारंगी व इन रंगो के मेल वाले) के कपड़े नहीं पहनता, वैसे इस्लाम में सफ़ेद और हरे कपड़े को ज़्यादा मह्त्व दिया गया है लेकिन सफ़ेद कपड़े हिंदुस्तानी तहज़ीब में किसी अपने के मरने पर पहने जाते है और हरे कपड़े खानकाहो और सूफ़ियों से जुड़ गए हैं। सियाह (काले रंग के) कपड़े सिर्फ़ इमाम हुसैन (अ.स.) के ग़म की निशानी हैं।

 

ज़ंजीर (छुरियों) का मातम कर इमाम हुसैन को दी श्रद्धांजलि

 

बाज़ारों, गली-कूंचों, नुक्कड़ों, होटलों और चौराहों पर बैठकर एक दूसरे के धर्मो और उनकी परम्पराओं पर उंगली उठाने वाले, धार्मिक भावनाओं को भड़का कर आपस में दंगा करवाने वालों को 44 वर्षीय हिंदू आध्यात्मिक नेता स्वामी सारंग से सीख लेनी चाहिए कि अपने धर्म का पूर्णतः पालन करते हुए सभी त्यौहारों, रीति रिवाजों को मानते हुए कैसे दूसरों के धर्म का सम्मान किया जाता है। 10 मुहर्रम (1 अक्टूबर 2017) को स्वामी सारंग आशूर (मुहर्रम का दसवां दिन) के जुलूस में शामिल हुए और विक्टोरिया स्ट्रीट स्थित इमामबाड़ा नाज़िम साहब से लेकर कर्बला तालकटोरा तक जंजीर (छुरियों) का मातम कर इमाम हुसैन को श्रद्धांजलि दी। जिसे देखकर कई लोग भौचक्के रह गए और लोगो के मन मे तरह तरह के सवाल उठने लगे की कोई हिन्दू धर्मगुरु ऐसा क्यों कर रहा है। ऐसे सम्प्रदायिक माहौल में ये सवाल उठना स्वभाविक था। लेकिन उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन की शाहदत के ग़म में, गंगा-जमुनी तहज़ीब को जीवित रखने के लिए, इमाम हुसैन ने जो मानवता का रास्ता दिखाया उस पर चलने की यह एक छोटी कोशिश मात्र है।

 

हुसैन तेरी अता का चश्मा दिलों के दामन भिगो रहा है,

ये आसमान पर उदास बादल तेरी मोहब्बत में रो रहा है,

सबा भी गुज़रे जो कर्बला से तो उसे कहता है अर्श वाला,

तू धीरे धीरे गुज़र यहाँ से मेरा हुसैन सो रहा है।

 

स्वामी सारंग ने सऊदी हुकूमत पर सवाल उठाते हुए कहा कि सऊदी सरकार का हज़रत मुहम्मद साहब की बेटी की क़ब्र को ध्वस्त करना हज़रत फ़ातिमा की दूसरी शहादत के समान है। उन्होंने कहा कि यदि आले सऊद को डर न होता तो वे हज़रत मोहम्मद साहब की क़ब्र भी ध्वस्त कर देते। सवामी सारंग सऊदी सरकार की निंदा करते हुए कहते हैं कि बड़े खेद की बात है कि आले सऊद शासन, मुसलमान होकर भी इस्राईल और अमेरिका के सामने झुकता है और उसकी पूजा करता है। आगे स्वामी कहते की मैं हिंदू होकर भी पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद की सुपुत्री हज़रत फ़ातिमा ज़हरा की क़ब्र के पुनर्निर्माण की मांग करता हूं।

 

स्वामी जी कहते हैं कि “सरल भाव से यदि हम हर एक मज़हब का खुले दिल से ईस्तकबाल करें तो बहुत सारे खलफ़िशार करने का मक़सद ख़ुद ब ख़ुद ख़त्म हो जाता है” स्वामी सारंग एक आध्यात्मिक सलाहकार हैं जो अब लखनऊ के बाशिंदे हो गए हैं इन्हीं फ़िज़ाओं में सुकून महसूस करते हैं और अपनी पत्नी एवं दो बेटियों के साथ रह रहे हैं।

 

( लेखक न्यूज़ पोर्टल पुर्वांचल विज़न के सम्पादक हैं )

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