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“शक्ति से सत्ता का सफ़र”

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अनूप के. त्रिपाठी

अक्सर होता है कि झगड़े/विवाद में तथ्य और सच्चाई सही-गलत और पक्ष/विपक्ष के शोर में कहीं दब और छिप जाते हैं।सच्चाई की प्रकृति ‘ब्लैक & व्हाइट’ की नहीं होती और ना ही हर समय सच्चाई को सही-गलत के दायरे में पारिभाषित किया जा सकता है।झगड़ा तो नजरिये का होता है,सच्चाई और तथ्य तो सही-गलत के बीच के ‘ग्रे एरिया’ में कहीं चमक के पीछे छिपे होते हैं।साथ ही जो सच को समझते हैं वो इस डर से बोलते नहीं कि पक्ष-विपक्ष की भावनाओं में डुबकी लगा रहे लोग उन्हें ‘इस तरफ’ और ‘उस तरफ’ के रंग में रंगे बिना चैन भी नहीं लेंगे।पर सच यही है कि तथ्यात्मक सच्चाई सही और गलत के बीच में कहीं नजरिये की रौशनी से बच के शांति से पड़ी सो रही होती है। समाजवादी पार्टी में वर्तमान में चल रहे विवाद के सम्बन्ध में ऐसे लोगों की भी संख्या कम नहीं है जो अखिलेश को ‘अखिलेश के लोगों’ से कहीं अधिक पसंद करते हैं और सिर्फ उनमें ही भविष्य का प्रतिनिधि देखते हैं,वो मानते हैं कि अखिलेश ने छवि और विकास के मामले में नए मापदंड स्थापित किये हैं पर इसके साथ ही साथ यह भी मानते हैं कि अखिलेश जी में अभी सुधार और परिपक्वता की काफी गुंजाइश है।परिपक्व ना होना कोई कमी या अपराध नहीं,परिपक्वता बिना व्यापक संघर्ष के नहीं आती।अखिलेश जी को अभी प्रशंसक और समर्थक का फर्क समझना बाकी है..बहुत से लोग अभी भी उनके सिर्फ ‘अच्छे दिनों’ के साथी हैं।ज़मीन की सच्चाई बड़ी पीड़ादायी होती है,अखिलेश जी को शायद अभी यह भी समझना बाकी है,क्योंकि कहीं ना कहीं यह भी एक सच्चाई है कि उन्होंने अपने पिता के संघर्ष को अभी आगे बढ़ाया है,संघर्ष की खुद की ज़मीन तैयार करना एक अलग अनुभव होगा।अगम्भीरता राजनीति के लिए अच्छी नहीं,राजनीति और राजनीति से जुड़े मानकों को समुचित सम्मान दिया जाना एक राजनेता से अपेक्षित होता है।अपने निंदक को सम्मान और तरज़ीह देना भी राजनैतिक महत्वाकांक्षा का एक विशेष पहलू होता है।अपनी आलोचना व निंदा को अपने विराट व्यक्तित्व में समाहित करना भी भविष्य के एक परिपक्व राजनेता के चरित्र का एक आयाम है।संकट को गरिमापूर्ण तरीके से निपटाना राजनीति के चुनौतियों से निपटने की तैयारी में सहायक होगा।हर नाकामयाबी का मतलब हार नहीं होता।अखिलेश भविष्य हैं क्योंकि उनमें इसकी पर्याप्त योग्यता है,वो ईमानदार हैं,कर्मठ हैं,भरोसेमंद हैं..उनके पास एक अभिनव भारत की नींव डालने का विज़न है…पर इसके साथ-साथ उन्हें अभी बहुत कुछ सीखना है…राजनीति और इससे जुड़े प्रतीकों की गरिमा का सम्मान सीखना अपेक्षित है।इन सबका मतलब अखिलेश के पक्ष में होना या विपक्ष में होना नहीं है..उनके विपक्ष में तो शायद कोई सम्भावना ही नहीं दिखती पर सच्चाई पक्ष-विपक्ष से परे है।सच समझने वाला डरता है कि उसे ‘लेबल’ लगाने वाले लोग छोड़ेंगे नहीं..पर सच बयां करने की कीमत कोई भी हो..चुकाना तो बनता है।

चलो अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही,                                                                                          कौन मानेगा कि हममें बेवफ़ा कोई नहीं!!

(लेखक राजनीतिक और सामाजिक मामलो के जानकार है यह उनके अपने विचार है)

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