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मदर्स डे विशेष : “माँ ” की ममता पर, क्या कह रहेे हैं ‘एडवोकेट सुनील चन्द्र श्रीवास्तव ‘

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” पहला शब्द “

अब भी है उसकी आँखों में प्यार का समन्दर, पर है जिसके खातिर- वो दूर है , उसकी हमदर्दी से , उसकी चाहत से ;

है भीड़ में खोया वो शख्स,दुनिया-दारी से अंजान, पैसों को बटोरने में, ऐसों आराम के चक्कर में बेईमान हो गया है ।

अब भी है उसकी आँखों में तड़प.. जिस रोज वो घर नही आता ; इस तड़प से बेखबर वो शख्स , माफ़ी मांगता है वहाँ, जहा वो देर से पहुचता है ।

अब भी है उसकी आँचल में ममता का खजाना ; पर है जिसके खातिर, वो खोया है, क्षणिक प्यार में, अँधेरी गलियों के बीच ; छोटे-छोटे छतों के नीचे लुटा देता है सारी कमाई, उसको लगता है ज़न्नत यंही है ।

अब भी रहती है वो भूखी-प्यासी इस प्रतीक्षा में कि, पहले उसे खिला दूँ । पर इस भूख और प्यास से अनभिज्ञ , वो तोड़ता है हड्डियां उस बाजार में , जहाँ हर चीज का सौदा होता है.. जिन्दगी का,मौत का,रिश्तों का,विश्वास का ।

अब भी है उसका वही रूप , जो पहले था, जो हमारी बन्द हथेलियों को हिलाने भर से समझ जाती थी, हमारी भावनाओं को ; हमारी आँखों में झांक लेती थी, हमारी परेशानियों को ।

अब भी है उसका वही नाम जो हमेशा से था, वो नाम जिसके उच्चारण मात्र से ही.. सुकून का सागर सिमट जाता है, हमारे मन-मस्तिक में, हमारी अंतरात्मा में ।

वही नाम .. जो हमारे मुख से निकला ” पहला शब्द ” था……..” माँ ”   ।

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