नहीं रहे कामरेड अशफाक उर्फ बबर खाँ ! उनके गाँव चैपुरवा नेपाल में हज़ारों लोग पहुँचे अन्तिम दर्शन के लिए
May 11, 2017 5:28 am
सगीर ए ख़ाकसार “वरिष्ठ पत्रकार”
बढनी,सिद्धार्थनगर। कामरेड अशफ़ाक़ अहमद खां उर्फ बबर खां ने इस दुनिया ए फ़ानी को अलविदा कह दिया।जब कभी देखा उन्हें बस विमर्श करते हुए।मसला चाहे राष्ट्रीय हो क्षेत्रीय खुल कर अपनी राय रखते थे।साफगोई का क्या कहना अपने ही प्रतिस्पर्धी उम्मीदवार की तारीफ वो भी अपनी ही पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के सामने करने में नहीं हिचकिचाते थे।उनका चेहरा यूं ही बरबस आंखों के सामने आजाता है।एक छवि उभरती है एक हाथ मे सिगरेट से उड़ता धुआं का छल्ला और दूसरे हाथ मे नेपाल का प्रतिष्ठित समाचार पत्र कांतिपुर।10 मई बुधवार की शाम जब उनके मौत की खबर मिली तो उनके गांव चैपुरवा नेपाल उनके अंतिम दर्शन के लिए पहुंचा।देखा कि कॉमरेड जिस कमरे में लेटे हुए थे।उस कमरे की सभी अलमरियां अखबार और किताबों से पटी हुईं थी।जिसमे बहुत सारे अखबार तो इतने पुराने दिख रहे थे जैसे कि वो बिल्कुल रद्दी हो गए थे।लेकिन उन्होंने उसे सहेज कर रखा हुआ था।
कामरेड बबर खां ने एक भरपूर जीवन जिया।80 वर्ष की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा।नेपाल के कपिलवस्तु जिले में कम्युनिस्ट विचार धारा के पोषक थे वो।वामपंथी विचार धारा से राजनीति की शुरुआत की और अंत तक वाम पंथी ही रहे।हालांकि चुनाव के मामले में ज़्यादा भाग्यशाली नहीं रहे ।सहकारी चुनाव में वो एक बार अध्यक्ष ज़रूर चुने गए लेकिन पार्लियामेंट के एलक्शन में कभी नही जीते।नेकपा एमाले में लंबे समय तक रहे ।फिर नेकपा माले में जीवन बिता दिया।नेपाल के पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन अधिकारी और मदन भंडारी के करीब रहे।कई बार काठमांडू सहित नेपाल बुटवल,दांग, और अन्य जगहों पर आयोजित वामपंथी सम्मेलनों में हिस्सा लिया।कृष्णनगर के पूर्व प्रधान अभय प्रताप शाह उर्फ छोटे बब्बू कामरेड बबर खां को याद करते हुए कहते हैं।उनमें साफगोई थी।वो स्पष्टवादी थे।एक बार वो मेरे बड़े भाई पूर्व सांसद अजय प्रताप शाह के खिलाफ पार्लियामेंट का चुनाव लड़ रहे थे।प्रचार प्रसार अपने चरम पर था।वो नेकपा एमाले से प्रत्याशी थे।उनके प्रचार में मनमोहन अधिकारी भी आये हुए थे।।नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन अधिकारी से बड़े भाई का उन्होंने परिचय कराया और कहा कि यही हैं मेरे प्रतिस्पर्धी उम्मीदवार अजय प्रताप शाह।वहां मौजूद लोग उनकी यह बात सुनकर हैरान हो गए जब उन्होंने कहा कि अजय प्रताप शाह ही चुनाव जीतेंगे।मैं लड़ाई से बाहर हूँ।
कामरेड बबर खां एक ज़िंदादिल इंसान थे।साफगोई,तो थी यही दावत खिलाने के भी बहुत शौकीन थे।चाहे वोअपनी विचारधारा को या किसी और मत का अनुयायी।सबकी मेहमाननवाज़ी उनका शग़ल था।श्री अभय शाह एक वाक्या याद करते हुए कहते हैं एक बार उन्होंने क्षेत्र के कई बड़े नेताओं को यह इत्तिला दी कि मेरे घर पर मेरी पार्टी के अध्यक्ष आज रात विश्राम करेंगे ।आप सब लोग भी आएं सबकी मुलाकात हो जाएगी।सभी लोग अपना कामधाम छोड़कर उनके घर पहुंच गए ।लेकिन वहां कोई बड़ा नेता उनके घर मौजूद नही था।लोगों ने पूछा कहाँ हैं आपकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष?बबर खां ने जवाब दिया यार कौन नेता ?कैसा अध्यक्ष?मुझे तो बस आपलोगों को दावत खिलानी थी सो बुला लिया।आप लोगों को बुलाने का यही आसान नुस्खा दिख,सो आजमा लिया।
राष्ट्रीय जनता पार्टी के केंद्रीय समिति के सदस्य दिनेश चंद्र गुप्ता कहते हैं अब कहाँ मिलते है ऐसे अच्छे इंसान और सियासत दान।वो वसूलों की राजनीति करते थे।कभी सिद्धांत से समझौता नहीं करते थे।अब सियासत में मूल्यों और आदर्शों का क्षरण राजनैतिक पतन का एक अहम कारण बनता जा रहा है।बृहस्पति वार को उनके पैतृक गांव चैपुरवा में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।उनके जनाज़े की नमाज़ डॉ अब्दुल गनी अलकूफ़ी ने पढ़ाई। डॉ अनवर अहमद खां, फरहाद खान,मौलाना मशहूद नेपाली,एहसान खान,रामकुमार गुप्ता, किफ़ायतुल्लाह खान,के के लाल,अकील मियां,मिर्ज़ा अरशद बेग,असीम अहमद,इक़रार खान,अब्दुल कलाम खान,लक्ष्मण भुसल,संजय गुप्ता,के के गुप्ताके अलावा बड़ी तादाद में लोगों ने उनके अंतिम संस्कार में हिस्सा लिए।कामरेड बबर खां का राजनैतिक जीवन बिल्कुल उच्च आदर्शों और मूल्यों वाला था।अब जब राजनीति जातिवाद,सम्प्रदायवाद,क्षेत्रवाद जैसे संकीर्ण जंजीरों में जकड़ती जारही है ऐसे में कामरेड बबर खां की कमी ज्यादा नुकसान देह साबित होगी।अलविदा कामरेड!