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प्राथमिक विद्दालयों में शिक्षा की दिशा और दशा , ज़िम्मेदार कौन

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विवेक यादव प्रभाव इंडिया  के लिए

 

प्राथमिक विद्यालयों में एक तो पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं । जो भी हैं उन्हें हलवाई बना दिया गया है । आठवी तक वैसे भी परीक्षा तो होती नहीं है, इसीलिए वे पढ़ाई-लिखाई
की चिंता छोड़ खिचड़ी में नमक-तेल-मिर्ची की चिंता में व्यस्त रहते हैं ।
इसके अलावा जनगणना ,मतगणना , बाल गणना , बी एल ओ , पोलियो, इत्यादि में सर खपाते रहते हैं। बीटीसी मॉड्यूल की शोध
से पता चलता है कि महाराष्ट्र छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश के पाँचवी पास 64 % बच्चों को पढ़ना नहीं आता । उत्तरप्रदेश के 69 % पाँचवी पास बच्चों को पढ़ना नहीं आता । ग्रामीण भारत में 72 % बच्चे दहाई के अंकों को जोड़-घटा नहीं सकते तथा66% बच्चे घड़ी देखकर समय नहीं बता सकते । जाति प्रथा शिक्षा में बहुत बड़ी बाधा है । युनेस्को की 19 जनवरी 2010 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता बहुत खराब है । ज्ञातव्य है कि इन ग्रामीण विद्यालयों में 99%
बच्चे गरीब , पिछड़े व अनुसूचित जाति अनुसूचित जन जातियों के होते हैं ।
जो समाज शिक्षित होता है वह तर्क करता है , जो तर्क करता है वह सही-गलत
की पहचान कर सकता है ,जो सही गलत की पहचान कर सकता है वह उचित निर्णय ले सकता है , जो निर्णय कर सकता है वह नेतृत्व भी कर सकता है , जो नेतृत्व करता है वह सुदृढ़ समानता और समता पर आधारित समाज बनाने में अपना योगदान दे सकता है । यदि हालात यही रहे तो स्थिति बद से बदतर होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।

 

( लेखक : विवेक यादव प्रख्यात शिक्षाविद हैं vivek.vcci@gmail.com
मेलाबाग़ , शिकोहाबाद )

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