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” विचार शून्य होती संवेदनाएँ ” ! पढ़िए, लेखक विवेक यादव को ऐसा क्यो हो रहा है महसूस

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विवेक यादव
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आज विज्ञान के दौर में मानव का मशीनीकरण या यूँ कहें कि संवेदनाएँ विचार शून्य होती जा रही हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति न होगी।
हर दिन कहीं न कहीं सुनने को मिल रहा है या समाचारपत्रों , टीवी आदि के माध्यम से पता चलता है कि फलां जगह पर पुत्र ने पिता को गोली मारी , भाई ने भाई का कत्ल किया , भाई ने बहन का सर कलम किया, बेटों-बहुओं ने माँ-बाप को घर से निकाला आदि।
ये सब समाज के विकृत अंग को प्रतिविम्बित करती घटनायें अन्तर्मन को गहराई तक झकझोर कर रख देती हैं और सोचने को यह मजबूर करती हैं कि आखिर हम इसी समाज का हिस्सा हैं ? क्या कारण है कि आज रिश्ते-नाते सब ताक पर रख कर इंसान इंसानियत का कत्ल कर रहा है ?
मानवीय संवेदनाएँ कहाँ लुप्त होती जा रही हैं ?
पहले यदाकदा होने वाली ऐसी अस्वीकार्य घटनायें , अब समाज में जिस तीव्र गति से बढ़ती जा रही हैं उनका आने वाली पीढ़ियों पर क्या प्रभाव पडेगा ? सोंच कर रोंगटें खड़े हो जाते हैं । जिनके भविष्य के लिये हम और आप नये ओज भरे ज्ञान-विज्ञान से सुदृढ़ भविष्य की सुनहरी कल्पना करते हैं।

 

 

(लेखक जाने माने सामाजिक जानकार एवं शिक्षाविद हैं ।
विज्ञान नगर, मेलावाला बाग, शिकोहाबाद।
संपर्क सूत्र: 9411937022
vivek.vcci@gmail.com)

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